ना जाने किस वेष में नारायण मिल जाएं

1

प्रशासन ने ऐलान करवाया – ” गाँव में बाढ़ आने वाली है । सभी गाँव खाली कर ऊँची जगह चले जांए। ” घोषणा को सुनते ही सभी गाँव वाले अपने जरूरी सामान व पालतू मवेशियों को लेकर गाँव खाली कर सुरक्षित जगह चले गये।

एक व्यक्ति जो मंदिर का पुजारी था और मंदिर परिसर में ही बने मकान में रहता था, उसका ईश्वर पर अनन्य श्रद्धा व विश्वास था। घोषणा को सुनने के बाद उसके पड़ोसी उसे अपने साथ चलने को समझाते रहे,पर वह उनके साथ नहीं गया। उसका एक ही जवाब था, कि मुझे मेरे प्रभु पर बहुत विश्वास है….वे मुझे बचा लेंगे। मुझे डूबकर मरने नहीं देंगे।

जब यह बात गाँव के सरपंच व मुखिया ने सुनी तो उन्होंने भी आकर उसे बहुत समझाया पर वह नहीं माना और वहां से नहीं गया।

बाढ़ का पानी बढ़ता गया और बढ़ते-बढ़ते उसके घर में घुस गया। जब घर के अन्दर कमर से ऊपर पानी हो गया तो वह घर की छत पर चढ़ गया। राहत कार्य में लगे कुछ बचाव कर्मी की नजर जब छत पर फंसे पुजारी पर पड़ी तो वे नाव लेकर उसको बचाने आये पर पुजारी जी ने उनके साथ भी जाने से इनकार कर दिया ।

वह यही रटे जा रहा था कि मुझे भगवान पर पूरा विश्वास है। वो मुझे बचा लेंगे।

बाढ़ का पानी बढ़ता गया और जब पानी छत को छूने लगा तब हेलीकाप्टर से बचावकर्मी उसको बचाने आये पर वह उनके साथ भी जाने से इनकार कर दिया और बोला मुझे भगवान पर पूरा भरोसा है भगवान मुझे बचा लेंगे।

बाढ का पानी और बढ़ा । मकान गिरकर बह गया और पुजारी जी भी बाढ़ के पानी में डूब कर मर गये।

मरने के बाद ईश्वर के पास पहुंच कर पुजारी जी ने उनसे शिकायत की। उसने ईश्वर से गुस्से से कहा कि आप कहते हैं कि जो मेरा भक्त है मैं उसका बाल भी नहीं बांका नहीं होने देता। मैं भी तो आपका भक्त हूं। दिन-रात आपके नाम की माला जपता रहा। मैंने आप पर पूरा भरोसा किया फिर भी आपने मेरी रक्षा नहीं की। आपने मुझे डूबने से क्यों नहीं बचाया..?

भगवान मुस्कुरा कर बोले – ” आया तो था तुझे बचाने … कभी पड़ोसी के रूप में, तो कभी सरपंच व मुखिया के रूप में…। नाव व हेलीकॉप्टर लेकर भी तो मैं ही गया था, बचाव कर्मी के रूप में ….पर तूने मेरी बात कहां मानी? तू मुझे पहचानने से चूक गया।

क्या तू भूल गया कि ना जाने किस वेष में नारायण मिल जाएं । तुम केवल अपनी मूर्खता के कारण डूबे हो। मेरा इसमें कोई दोष नहीं।”

इतना सुनते ही पुजारी जी को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ और उनका सर शर्म से झुक गया।

मित्रों..!
इस कहानी का सार यही है कि, बुरे वक़्त में जो भी व्यक्ति चाहे वह छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या गरीब, अगर आप की सहायता करे तो उसे भगवान का रूप मानके, उसकी सहायता स्वीकार करनी चाहिए। क्योंकि इंसान में ही भगवान बसते हैं, बस हमें पहचाननें की जरूरत है।सम्भव है कि, भगवान नें ही उस व्यक्ति को, उस समय हमारी सहायता के लिए भेजा हो और जब हमारी विपत्ति में कोई सहायक बनकर आता है, तो कहते भी हैं, कि तुम तो भगवान का रूप बनकर आ गए मेरे लिए।

सहायता लेना कोई बुरी या शर्म की बात नहीं है, लेकिन मौका मिलने पर हो सके तो किसी दूसरे की करिये भी। क्योंकि मिलकर ही हम जीवन की कठिनाइयों को दूर करके एक-दूसरे के जीवन को आसान और सुखद बनाते हैं।

नर में ही नारायण बसते हैं।

Share.

About Author

1 Comment

  1. Pingback: भगवान का न्याय | ईश्वर का गणित | भगवान का मूल्यांकन

Leave A Reply