माँसाहार और इसके दुष्परिणाम जो हमे कहीं का नही छोड़ेगी।

0

माँसाहार (Non-Vegetarian) का सेवन बंद करिए।

भारत में पिछले कुछ समय से माँसाहार का सेवन काफी तेजी से बढ़ा है। इसका प्रमुख कारण भोगवादी संस्कृति का बढ़ावा है। भारतीय संस्कृति कभी भी जानवरों पर हिंसा नहीं सिखाती तो फिर यह सोचने वाली बात है कि आखिर इस तरीके की संस्कृति हमारे देश में आ कहां से रही है। जब मैंने इसके बारे में जानने की कोशिश की तो मुझे काफी हैरान और परेशान कर देने वाले तथ्य सामने नजर आए।
माँसाहार ना केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है बल्कि यह पृथ्वी के कार्बन उत्सर्जन का एक बड़ा और प्रमुख कारण भी है।

तो आइए फिर जरा स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी माँसाहार के सेवन को देख लेते हैं :-

बहुत सारे माध्यमों से हमें यह बता दिया गया है कि माँसाहार का सेवन करने से हमारे शरीर में प्रोटीन की कमी नहीं होती है। इस हिसाब से तो जो लोग माँसाहार नहीं करते उन लोगों को जमीन पर बेहोश होकर गिर जाना चाहिए। दोस्तों यह एक बहुत बड़ा झूठ है जो हम लोगों को मांस उत्पादन करने वाली इंडस्ट्री बता रही है ताकि वह अपना माल हमें आसानी से बेच सकें और मोटा मुनाफा कमा सकें।

अगर हम सिर्फ प्रोटीन की बात करें तो इसकी आपूर्ति हमें दूसरे शाकाहारी माध्यमों से भी हो सकती है जैसे विभिन्न प्रकार की दालें , सोया प्रोडक्ट्स , ब्रोकली और अन्य विभिन्न माध्यम जो ना केवल अच्छे हैं बल्कि सस्ते भी हैं। तो सिर्फ थोड़े से स्वाद और प्रोटीन के लिए किसी की हत्या करना कहां तक उचित है।

अब तो वैज्ञानिकों द्वारा किए गए रिसर्च मैं भी साबित हो गया है कि माँसाहार के सेवन से हमें दिल की बीमारी , लीवर की बीमारी , हाई ब्लड प्रेशर और शुगर जैसी प्राण घातक बीमारी हो सकती है। क्योंकि मांस में वसा (Fat) की मात्रा ज्यादा होती है, जिसके कारण हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा काफी बढ़ जाती है। जिससे उपरोक्त बीमारियों का खतरा काफी बढ़ जाता है।

आइए जान लेते हैं कि माँसाहार हमारी पृथ्वी के लिए कैसे और कितना घातक है :-

दोस्तों क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी के कुल कितने हिस्से पर इंसानों के खाने के लिए अनाज, फल और सब्जियां उगाई जाती है?

आपको जानकर हैरानी होगी कि मात्र 23% हिस्से पर ही हम इंसानों के लिए यह सब कुछ उगाई जाती है बाकी के 77% हिस्से पर हम उन जानवरों के लिए अनाज उगाते हैं जिन्हें हम मार कर खाते हैं जैसे कि भेड़ , बकरी , गाय , सूअर , भैंस इत्यादि।

Global Land Use Graphic

जब किसी जानवर को 15 से 20 किलो अनाज, पानी और न जाने कितने संसाधन लगते हैं तब जाकर 1 किलो मांस पैदा होता है तो कृपया मांसाहारी लोग ये ना सोचें कि वह मांस खाकर पेड़ पौधे और दूसरी चीजें बचा रहे हैं। जितना अनाज हम 1 किलो मांस पैदा करने के लिए कर रहे हैं उतने अनाज में न जाने कितने गरीब और भूखे लोग खाना खा लेते।

जिस 77% हिस्से पर हम जानवरों के लिए अनाज उगाते हैं उससे हमें कुल कैलोरी की आपूर्ति 18% और प्रोटीन की 37% आपूर्ति ही होती है, बाकी का 63% प्रोटीन और 82% कैलोरी हमें 23% जमीन के हिस्से से ही हो रही है।

Nutritional value and environmental impact of animal products in hindi

अब आप यह सोच रहे होंगे कि अगर इतनी संख्या में जानवर हैं, तो उनके लिए तो अनाज उगाना ही पड़ेगा। तो दोस्तों आप इस भ्रम में मत रहिएगा कि ये जानवर अपने आप इतनी संख्या में पैदा हो रहे हैं हम इंसान अपने स्वार्थ की खातिर इतनी संख्या में इनको पैदा कर रहे हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत बीफ के एक्सपोर्ट में नंबर 1 पर है।

बहुत सारे देश तो एनिमल फार्मिंग के लिए जंगल भी काटने लगे हैं ताकि दूसरे देशों को मांस पहुंचा सके दोस्तों जंगल काटने से केवल पेड़ ही नहीं कटते बल्कि उनके साथ-साथ ना जाने कितनी प्रजातियां विलुप्त भी हो जाती हैं।

अब आते हैं क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग पर बहुत सारे लोग यह बोलते हैं कि क्लाइमेट चेंज मांस खाने से नहीं गैसों से होता है। लेकिन जिन गैसों के कारण क्लाइमेट चेंज हो रहा है, जिन्हें ग्रीनहाउस गैसेस कहते हैं उनमें प्रमुख कौन हैं – मिथेन और कार्बन डाइऑक्साइड और तमाम अन्य गैसेस भी हैं। लेकिन क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण कार्बन डाइऑक्साइड गैस है। इन गैसों का प्रमुख कारण एनिमल एग्रीकल्चर है। जिन बड़े-बड़े जानवरों को हम अपने मांस के सेवन के लिए पैदा कर रहे हैं, उन्हीं जानवरों के शरीर से मेथेन और कार्बन डाइऑक्साइड गैस उत्सर्जित होती है। इससे यह साबित होता है कि माँसाहार ही क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है।

Share.

About Author

Leave A Reply